कॉर्न फ्लेक्स निर्माण इकाई : मक्का उद्योग क्षेत्र का नया आयाम

 


जिले में मक्का फसल के क्षेत्रफल में गत वर्षो की तुलना में लगातार वृध्दि हो रही है तथा वर्ष 2007-08 में मक्का फसल का रकबा जहां लगभग 92 हजार हैक्टेयर था, वहीं वर्ष 2019-20 में 2 लाख 98 हजार हैक्टेयर आकलित किया गया है । प्रदेश में छिन्दवाड़ा जिले में सर्वाधिक मक्का उत्पादन के दृष्टिगत इस जिले में कॉर्न फ्लेक्स व्यवसाय की अपार संभावनायें है जिसका जिले के युवा उद्यमी लाभ ले सकते हैं । इस व्यवसाय से जहां मक्का उत्पादक कृषक लघु उद्योगों से जुड़ेगें, वहीं जिले में रोजगार सृजन के अवसर भी प्राप्त होंगे एवं उद्योग के क्षेत्र में नये आयाम प्राप्त किये जा सकेंगे ।  
भारत और बहुत सारे अन्य देशों में कॉर्न फ्लेक्स मुख्य रूप से स्वल्पाहार में दूध के साथ उपयोग में लाया जाता है तथा व्यक्ति अपने स्वाद के अनुसार इसको अन्य तरीकों से भी उपयोग में ला सकते हैं । स्वल्पाहार भोजन के तौर पर उपयोग में लाने के लिये कॉर्न फ्लेक्स को दूध में डालकर खाया जाता है । जो लोग स्वल्पाहार भोजन में रोटी या पराठा पसंद नहीं करते है, उनके लिये कॉर्न फ्लेक्स एक अच्छा विकल्प हो सकता है । चूंकि इसका निर्माण मक्के से होता है इसलिये यह स्वाद में भी स्वादिष्ट होता है । मक्का एक ऐसी फसल है जिसका उत्पादन हमारे देश में बहुतायत मात्रा में होता है और मक्के का उपयोग तेल बनाने, आटा बनाने, अनाज का सत्व बनाने, तरल ग्लूकोस बनाने आदि में  होता हैं । पॉप कॉर्न के अलावा इसका उपयोग अन्य स्नेक्स आइटम बनाने में भी किया जाता हैं । कॉर्न फ्लेक्स की इकाई का विनिर्माण कर जहां कॉर्न फ्लेक्स को भारतीय स्वल्पाहार का एक अभिन्न अंग बनाया जा सकता है, वहीं इसके हल्के व स्वास्थ्यप्रद गुण के कारण इसकी लोकप्रियता का लाभ लेते हुये उद्योग के क्षेत्र में नये आयाम प्राप्त किये जा सकते हैं । मक्का एक मौसमी फसल है और इसका उत्पादन मई से सितंबर में किया जाता है, इसलिये यदि किसी उद्यमी को कॉर्न फ्लेक्स का उद्योग लगाना हो तो उसे अपनी पूरे साल के लिये आवश्यकतानुसार मक्के को स्टोर करके रखना पड़ेगा ताकि वह पूरे साल मक्के से कॉर्न फ्लेक्स का उत्पादन कर सकें । यह पीले भूरे रंग या हल्के भूरे रंग का होता है । इसका रंग इस बात पर निर्भर करता है कि यह पीले रंग के मक्के से बनाया गया है या सफेद रंग के मक्के से । इसको बनाने में किसी गंध या अन्य पदार्थ का उपयोग नहीं किया जाता है । कॉर्न फ्लेक्स की प्रकृति हाईग्रोस्कोपिक होती है, इसलिये इन्हें हवा में खुला करके नहीं रखना चाहिये अन्यथा कॉर्न फ्लेक्स लचीले हो सकते है। कॉर्न फ्लेक्स में प्रति 100 ग्राम 357 मिली ग्राम कैलोरी होती है । कॉर्न फ्लेक्स पतले और चपटे आकार का होता है । इसे दूध में डालने से यह दूध को सोखकर फूल जाता है और खाने में स्वादिष्ट होता है । कॉर्न फ्लेक्स का उपयोग सामान्यत: नाश्ते में दूध के साथ किया जाता है । इसके अलावा विभिन्न प्रकार का स्वादिष्ट खाना बनाने के लिये भी कॉर्न फ्लेक्स प्रयोग में लाया जाता है । इसमें अनाज का सत्व, कार्बोहायड्रेट और प्रोटीन होने के कारण बीमार व्यक्तियों को भी इसे खाने में दिया जाता है । इस प्रकार का खाना बीमार व्यक्ति में स्फूर्ति और उत्तेजना लाने में मदद करता है। यदि भारत में देखा जाये तो कॉर्न फ्लेक्स का मुख्य रूप से उपयोग समाज के उच्च वर्ग द्वारा होटल, हॉस्पिटल और नर्सिंग होम में किया जाता है । लोगों के आधुनिकीकरण की ओर बढ़ते कदम से उनकी जीवन शैली में दिनों दिन परिवर्तन आते जा रहे है । यही कारण है कि कॉर्न फ्लेक्स का उपयोग पिछले दशक के मुकाबले काफी बढ गया है । कॉर्न फ्लेक्स का उपयोग बियर बनाने के लिये लिक्योर इंडस्ट्री द्वारा भी किया जाता है । वर्तमान में रहन सहन के स्तर में सुधार, लोगों की खरीददारी की आदत बढ़ने और जीवन में व्यस्तता के कारण लोग भोजन के उपयोग की तरफ आकर्षित हो रहे हैं । यही कारण है कि कॉर्न फ्लेक्स का उपयोग शहरी क्षेत्रों में तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है । जहां तक कॉर्न फ्लेक्स के बिजनेस स्कोप का सवाल है वर्तमान में इस बिजनेस में कुछ ही नाम मात्र की कंपनियां अपना पैर जमाये हुये हैं जो समाज, होटल, हॉस्पिटल, नर्सिंग होम की कॉर्न फ्लेक्स की मांग को पूरा करने का भरसक प्रयत्न कर रहे हैं । पहले इसका उपयोग केवल नाश्ते के तौर पर किया जाता था, किंतु अब होटलों, हॉस्पिटलों, नर्सिंग होम के अलावा लिकर इंडस्ट्री में भी कॉर्न फ्लेक्स का उपयोग किया जाने लगा है जिसके चलते इसकी मांग में वृध्दि होने लगी है । भारतीय बाजार के अलावा बाहरी देशों में भी इसकी बहुत बड़ी मात्रा में मांग है, इसलिये स्वदेशी मांग को पूरा करने के अलावा कॉर्न फ्लेक्स को विदेशों की ओर निर्यात भी किया जा सकता है । कॉर्न फ्लेक्स उद्योग वर्तमान में बहुत अधिक प्रचलित नहीं है, इसलिये इस बिसनेस में प्रतिस्पर्धा कम देखने को मिल सकती है । एक सर्वेक्षण में यह भी पता चला है कि वर्तमान उद्योगों द्वारा उत्पादित कॉर्न फ्लेक्स की मात्रा से स्वदेशी मांग ही पूरी नहीं हो पा रही है । भारत में बहुत सारे फूड जैसे- ओट्स और मूसली उपयोग करने के लिये तैयार फूड है जिन्हें दूध के साथ मिलाकर उपयोग में लाया जाता है और कॉर्न फ्लेक्स भी इनकी तरह दूध के साथ उपयोग में लाया जाने वाला फूड है । यही कारण है कि इनका उपयोग ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले व्यस्तता भरे शहरों में अधिक होता है ।
      कॉर्न फ्लेक्स का व्यवसाय स्थापित करने के लिये बहुत सारी मशीनों एवं उपकरणों की आवश्यकता होती है जिसमें रोटरी स्टीम कूकर, टेम्पिरिंग टैंक, स्टीम बायलर, रोटरी ओवन, हेवी फ्लेकिंग मशीन, स्टीरर, वायब्रेटिंग स्क्रीन, कॉर्न ब्रेकिंग मशीन आदि शामिल है । इन मशीनों का उपयोग केवल मक्के से बनने वाले कॉर्न फ्लेक्स बनाने के लिये नहीं, बल्कि गेहूं और चावल के फ्लेक्स बनाने के लिये भी किया जा सकता है । इस व्यवसाय का मुख्य कच्चा माल मक्का है, इसलिये लाभकारी व्यवसाय के लिये यह जरूरी हो जाता है कि उद्योग उस क्षेत्र में लगाया जाये, जहां मक्का की पैदावार अधिक मात्रा में होती है । सूक्ष्म स्तर पर लगभग 15.50 लाख रूपये लागत की लागत से कॉर्न फ्लेक्स की इकाई का विनिर्माण किया जा सकता है ।